...

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तराना
ऐ बेवफा मुझे किस्मत पे रोने दो ,
हो जाओ दूर मुझे आपे में खोने दो ;
लम्हा जुनूं का कभी गुजरा था ख्वाहिश से,
जुदाई के साए में रंजूर दिल सोने दो।
मोहब्बत नहीं बल्कि मैयत का फतवा है ,
ऐसे रिया को ना अब यारों ढोने दो;
समझा था दिल दिल लगाना ही काफी है,
समझाऊं दिल को यूं वकूफ तो होने दो ।
दगा है कितनी होशियारी से जालसाज ,
दगा की डोर से जर्रे दिल पिरोने दो ;
होगी फिक्र छोड़ कर वो गैर के आगोश में
मुझे दाग-ए - दामन चंद आंसुओं से धोने दो।

© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत' 30/6/2005