...

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मज़बूर/मज़दूर
कोई अपनों को खो रहा,
किसी का बह रहा खून है,
कोई भूखे पेट सो रहा,
कहाँ किसी को सुकून है।

किसी के पैरों में छाले,
किसी के माथे पर पसीना,
जिसकी ईमारत को सींचा,
उसी ने रोटी कपड़ा मकान छीना।।

कोई बूढ़े बाप को ढोया,
कोई बच्चों के संग भूखे सोया,
किसी ने पीड़ा से जान गवाईं,
कोई बीच सड़क पर बिलख बिलख के रोया।।

कोई गैरों में अपनों को ढूंढता,
किसी ने अपनों में गैर पाया,
हाय बेबस जिंदगी ने,
ये कैसा दिन दिखाया।।


दाने दाने को तरसाया उस...