...

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कालरात्रि
नवदुर्गा के सप्तम रूप को
न जाना तुम कभी भूल,
है यह गाथा माँ कालरात्रि की
लेलो चरणों की धूल |

हाथों में गंडासा ,वज्र लिए
हैं स्वरुप रात्रि सा काला,
बाल खुले हुए ,गधे पे सवार
रहती गले में मुंड की माला |

जब रक्तबीज के एक रक्त बूँद से
होता था लाखों दैत्यों का जन्म,
तब आदिशक्ति आयी कालरात्रि रूप में
जिससे समाप्त हुआ, रक्तबीजों का कुकर्म |

बुरी शक्ति ,तनाव ,संकट हर के
है ये शुभ फल देने वाली ,
इसी कारणवश माँ को मिला
एक और नाम 'शुभंकारी'|

अतः माँ की कृपा से
भक्त सदैव स्वस्थ बना रहता है,
साथ उन्हें अग्नि ,शत्रु इत्यादि का
कभी भय नहीं रहता हैं|


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