...

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जवानी का सफर
मां तेरी गोदी से निकलकर,
मै जाने कब बड़ा हो गया पता न चला।
घर की जिम्मेदारियां संभाल ली,
कब पैरो पर खड़ा हो गया पता न चला॥

दादी मां की गोदी में सोते सोते,
ये बिछौना कब बड़ा हो गया पता न चला।
पापा के कंधे पर इक उम्र गुजार दी,
मैं कब पैरो पर खड़ा हो गया पता न चला॥

दादु की उंगली पकड़ चलते चलते,
कब उन्हें रोड क्रोस कराने लगा पता ही न चला॥
दादी में के हाथों का निवाला खाते खाते,
कब उनके बुढ़ापे की लाठी बन गया पता न चला॥

बचपन गुजरा जिन चहारदीवारी में,
वो मका कब वीराना हो गया पता न चला॥
जिसके ख्वाब संजोए बचपन से,
वो सपना जाने कब अधूरा हो गया पता न चला॥

मां तेरी लोरियां सुन सोते सोते,
कब दिन की थकावट से सोने लगा पता न चला॥
बचपन में रंगीन दिखती थी जो,
वही जिंदगी कब इतनी बेरंग हो गई पता ही न चला॥
© ranvee_singh