...

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वेदना
हे पार्थ !
तिमिर अंधकारमय रजनी के साथ

कौन-सी वेदना से तुम बहे जाते हो?
क्रंदन से बने, तुम्हारे आंसुओ से रचे समुद्र में ?

तुम्हारी लालिमय आँखों में
मूल्यवान मोती से प्रतीत होते हैं यह,
हो तुम, किस वेदना के अश्रु समुद्र में ?

डूबते जाते हो अपने जीवन को साथ ले सूर्यास्त के साथ पश्चिम मे।

डर लगता है मुझे
उन सब भावी बातो से जो नियति ने रच रखी है खास,
ऐसा लगता है धक्का देने खड़ा कर रखा हों मुझे ऊंचे विशालकाय पर्वत कि चोटी के पास

अपनी इस असीम वेदना से प्रताडित करता हूं मे...