ग़ज़ल
मज़ा आता है तब ही मयकशी का
तमाशा बनता है जब ज़िंदगी का
मुझे घेरा हुआ है नफ़रतों ने
पता दे दो मुहब्बत की गली का
मिलाया ज़ह्र तुमने जिस नदी में
किनारा बन रहा हूँ उस नदी का
बचाने को...
तमाशा बनता है जब ज़िंदगी का
मुझे घेरा हुआ है नफ़रतों ने
पता दे दो मुहब्बत की गली का
मिलाया ज़ह्र तुमने जिस नदी में
किनारा बन रहा हूँ उस नदी का
बचाने को...