...

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कल्पनाऍं जीवन की
शून्य से मैं अंक बनाकर,लिख दूँ अपनी एक किताब,
समाहित हो मेरे जीवन की, जिसमें खुशियाॅं बेहिसाब,,

धरा के ऑंचल का लूँ सहारा,ले लूॅं नभ से मैं एक तारा, सुरसरि सी बहती जाऊँ, मिल ही जाएगा मुझे किनारा,,

जीवन पथपर कभी न ठहरूँ,अडिग हो पर्वतसा विश्वास,
समाप्त न हो कलम में स्याही,भरी है मुझमे जब तक श्वाॅंस,,

कर दूॅं कोरे कागज पर मैं अंकित शब्दो के मंजुल अंक,
मनचाहा जब हो जाएगा,मिल जाएगा विस्तृत आकाश,,

थाम कलम हाथों में लिख डालेंगे कल्पनाऍं लाजवाब,
समाहित हो मेरे जीवन की जिसमें खुशियाॅं बेहिसाब।।