...

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अधूरी मोहब्बत की कशिश में है…!!!!
खोया रहता है वो आजकल कुछ इस तरह
लगता है किसी दबिश में है
मोहब्बत में वो यूँ दीवाना है
बस अब उसकी गिरफ्त मे है उसकी बंदिश मे है
इश्क ने इस दरिया में डुबाकर सागर बना दिया
अब तो ज़िंदगी बस रंजिश मे है
खैरियत कहाँ इस दीवानगी मे तबियत ज़रा नासाज़ है
इल्म है फ़िर भी वो उस अधूरी मोहब्बत की कशिश में है
जब वो हमसे रूबरू हो
आँखों से कुछ गुफ्तगू हो
दिल मे दबी सी ये खाव्हिश है
पता है आलम दर्द का यूँ बरकरार रहेगा
उस दिल ने दिल से की कुछ ऐसी साजिश है
-ज्योति खारी