...

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आजादी
लो हम आजाद हो गए हैं,
नहीं है कोई बेड़ियाँ
नहीं है कोई बंधन,
हम कर पा रहे हैं अपने मन की मर्ज़ी,
ना देना है किसी को उत्तर, ना ही कोई अर्जी,
देश को आगे बढ़ाना है,
ये सोचकर पढ़ रहे हैं,
किताबों को समझकर,
इंसानों से लड़ रहे हैं,
आजादी इंसान को मिली है, पर दिमाग उसको जी रहा है,
ज्ञान की बातें छोड़कर, अज्ञान का रस पी रहा है,
मशीनें अब जवाब देने लगी, इंसान अब चुप हो गए हैं,
सब जगह काल्पनिक दोस्त है, इंसान कहाँ लुप्त हो गए हैं,
इंसान कहाँ गए ? वो अब मशीन हो गए हैं,
हम में इंसानियत नही रही, लो हम आजाद हो गए हैं।

© dinesh@M