...

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देर न लगी
आँखों को ही रंगना था पर चरित्र भी रंगने लगी
रात! काजल से कालिख बनते देर न लगी
नही रुकना था, पर रुका! भटक गया पानी
खेत! उपजाऊ से ऊसर बनते देर न लगी
अपनों का भ्रमजाल था उलझा रहा जीकर
शरीर! रिश्तों की चिता बनी जलते देर न लगी
तुम बतलाओ क्या टूटा क्या छूटा सफ़र में
साथ! जीवन की गाड़ी में पुर्जे बदलते देर न लगी
क्या मूल्यवान क्या अनुपयोगी ! हर वस्तु
हृदय! हाथों हाथ से निकलते देर न लगी
एक एक पल कितनी घड़ियां कितने दिवस की
प्रतीक्षा! किसका बीता समय फिसलते देर न लगी
किसका आरोप किसकी दलील अपराधी या वकील
सत्य! दल बल से न्यायालय चलते देर न लगी
अवरोधों के युग में जीते, मैंने भी कई लगाए हैं
आरोप! गड़े भाव उभरे मन को सलते देर न लगी ।।
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