सूखा पेड़
सूखा पेड़ खड़ा अकेला,
बीत गए दिन, बीती बेला।
जहाँ कभी थी छाँव घनी,
अब बस सूखी डालें फैला।
झूलते थे पंछी जिसकी शाख,
अब है चुप्पी, न कोई बात।
झड़ गए पत्ते, टूटे सपने,
सुनता बस तनहा बरगद रात।
...
बीत गए दिन, बीती बेला।
जहाँ कभी थी छाँव घनी,
अब बस सूखी डालें फैला।
झूलते थे पंछी जिसकी शाख,
अब है चुप्पी, न कोई बात।
झड़ गए पत्ते, टूटे सपने,
सुनता बस तनहा बरगद रात।
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