रूह की रौनक़ें
बारिश की बूँदें भी
चली गईं वहीं
जहाँ छोड़ आये हम
लहलहाते खेत
ये शहर तो सूखा-सूखा ही है,
चाहे हरितिमा की बात हो
या फिर हो प्रेम-स्नेह
अपनेपन की बरसात
कुछ भी तो हरियाता नहीं
शब्दों की भाषा,
कविता का कथ्य
सब कुछ रेत की आकृति में ढला,
किन्तु विडम्बना ये है कि...
चली गईं वहीं
जहाँ छोड़ आये हम
लहलहाते खेत
ये शहर तो सूखा-सूखा ही है,
चाहे हरितिमा की बात हो
या फिर हो प्रेम-स्नेह
अपनेपन की बरसात
कुछ भी तो हरियाता नहीं
शब्दों की भाषा,
कविता का कथ्य
सब कुछ रेत की आकृति में ढला,
किन्तु विडम्बना ये है कि...