...

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बचपन
कितनी अच्छी थी वो बचपन वाली राते
सो कहीं भी जाए, पर उठते बिस्तर से थे
किसी के बातों मा असर नहीं पड़ता था
पूरा दिन बस मौज मस्ती में निकलता था
गर्मी के छुट्टियों का इंतजार हम किया करते थे
नानी के घर जाके बदमाशियों का ख़्वाब सजोते थे
वक्त ने सबकुछ बदल दिया है
अब तो सबसे मिलने को तरसते है
अब राते भी बस जग के गुजरती है
बेफिक्र वाले दिन थे वो,
अब बस फिकर में दिन गुजरते है।

-Ruchi Tiwari