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आख़िर क्यों?
आखिर क्यों?
मन की पीड़ा मन ही जाने,
कौन किसे यूँ पहचाने।
ग़म में मेरे घिर ही गए तुम,
ऐसे जाने या अनजाने।
चाह हृदय की अब क्यूँ तुमसे,
हुए अरमाँ क्यों मनमाने।
तड़प उठी क्यूँ तेरे प्यार की,
कौन भला आये समझाने।
अधरों की नमीं तुम्हारे प्रियतम,
न काम मेरा दिल बहलाने।
आँखों से जो ढलक रही है ,
फीके सब उसके आगे मयखाने।
© विवेक पाठक
मन की पीड़ा मन ही जाने,
कौन किसे यूँ पहचाने।
ग़म में मेरे घिर ही गए तुम,
ऐसे जाने या अनजाने।
चाह हृदय की अब क्यूँ तुमसे,
हुए अरमाँ क्यों मनमाने।
तड़प उठी क्यूँ तेरे प्यार की,
कौन भला आये समझाने।
अधरों की नमीं तुम्हारे प्रियतम,
न काम मेरा दिल बहलाने।
आँखों से जो ढलक रही है ,
फीके सब उसके आगे मयखाने।
© विवेक पाठक
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