...

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तुम्हारे प्रेम में
रात को जाग कर अपनी आँखें सुजा रहा हूँ मैं।
तुम्हारे प्रेम में जल जल के बुझता जा रहा हूँ मैं।

ज़हर ही साँस अब मेरी, ज़हर हो जा रहा हूँ मैं
ना ही जी रहा हूँ मैं, न मर ही पा रहा हूँ मैं।

समझ कर भी तुम्हें तुममें, उलझता जा रहा हूँ मैं
तुम्हारे प्रेम में जल जल के बुझता जा रहा हूँ मैं।

तुम लैला न बन पायीं, मजनू बन जा रहा हूँ मैं
तुम्हें ही याद कर कर के, खुद को भुला रहा हूँ मैं।

तोहफे में मिले तुमसे, वो ज़ख्म सहला रहा हूँ मैं
तुम्हारे...