अश्क
मुस्कुराकर एक अश्क आँखो मे बार बारआया
हिजरत मे मुझे जब भी याद मेरा यार आया !
याद आया जब मुझे मुहब्बत का फसाना मेरा
निखरकर मेरी बेकरारी मे नया करार आया !
पुरजोर चल रही थी सबा-ए-इश्क मगर क्यो
सुहानी फिजाँ मे दफ़तन ये कैसा गुबार आया !
देखा जब तुम्हे मुस्कुराते हुँए रकीब की बाहो मे
फिर ना मुझे किसी की मुस्कान पर ऐतबार आया !
© संदीप देशमुख
हिजरत मे मुझे जब भी याद मेरा यार आया !
याद आया जब मुझे मुहब्बत का फसाना मेरा
निखरकर मेरी बेकरारी मे नया करार आया !
पुरजोर चल रही थी सबा-ए-इश्क मगर क्यो
सुहानी फिजाँ मे दफ़तन ये कैसा गुबार आया !
देखा जब तुम्हे मुस्कुराते हुँए रकीब की बाहो मे
फिर ना मुझे किसी की मुस्कान पर ऐतबार आया !
© संदीप देशमुख