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मुकदमे....
उसे नई शिकायतें करनी थी
और मुकदमे पुराने चल रहे हैं
एक शहर जो अपना था कभी हमारे
उस गली में अब फ़साने चल रहे हैं
नहीं जानता या जानता हूं मैं बहोत कुछ
फ़तवे क्यों हमारे सर के निकल रहे हैं
जिधर देखता हूं नई रोशनी तलाश करती है
मगर चराग़ों के अंधेरे मेरे साथ चल रहे हैं
और हमारे होठों कि हंसी हमारी लगे कैसे
तुम्हारे चेहरे के ग़म हमारी पेशानी पे चल रहे हैं
© Narender Kumar Arya
और मुकदमे पुराने चल रहे हैं
एक शहर जो अपना था कभी हमारे
उस गली में अब फ़साने चल रहे हैं
नहीं जानता या जानता हूं मैं बहोत कुछ
फ़तवे क्यों हमारे सर के निकल रहे हैं
जिधर देखता हूं नई रोशनी तलाश करती है
मगर चराग़ों के अंधेरे मेरे साथ चल रहे हैं
और हमारे होठों कि हंसी हमारी लगे कैसे
तुम्हारे चेहरे के ग़म हमारी पेशानी पे चल रहे हैं
© Narender Kumar Arya
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