...

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चिठ्ठियां...
इस संसार रूपी सागर में, मैं स्वयं अपने में गुम सा हो गया हूं...
अनंत भावनाए हृदय में संजोए, इसकी अनंत गहराईयों में अनंत तक खो सा गया हूं....

जैसे चिठ्ठियां, अनेकों भावनाएं अपने में संजोए हुए भी निष्प्राण सी है..
अपने जैसों की लाखों के भीड़ के बीच नितान्त अकेली सी होती है...

बिलकुल जिन्दगी के मैले में गुम हुए शख़्स की जिंदगी की तरह ही है इनकी कहानियां..
इंतज़ार में अपने गंतव्य के, अनेकोनेक भावनाएं अपने में संजोए

ना किसी से कोई शिकवा न गिला न शिक़ायत ना किसी से कोई बात ना उलाहना बस नियति के लेखे अनुसार अनन्त तक का सफ़र.. चुपचाप तय करती जाती हैं ये चिठ्ठियां...

उस अनंत तक का सफ़र, जहां पहुंच कर अस्तित्व विहीन ही हो जाना है पर फिर भी.. गंतव्य पहुंचना ही है हर हाल किसी भी हाल...
वाह री चिठ्ठियां.... ज़िन्दगी की अनमोल सीख देती:;
ये प्यारी प्यारी चिठ्ठियां... वाह री चिठ्ठियां...
© दी कु पा