...

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चिठ्ठियां...
इस संसार रूपी सागर में, मैं स्वयं अपने में गुम सा हो गया हूं...
अनंत भावनाए हृदय में संजोए, इसकी अनंत गहराईयों में अनंत तक खो सा गया हूं....

जैसे चिठ्ठियां, अनेकों भावनाएं अपने में संजोए हुए भी निष्प्राण सी है..
अपने जैसों की लाखों के भीड़ के बीच नितान्त अकेली सी होती है...

बिलकुल जिन्दगी के मैले में गुम हुए शख़्स...