...

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प्रेम विवाह
प्रेम विवाह न करना मित्रों, जब तक स्वयं न सक्षम हों।
कटु व्यवहार किया जाता जग में, जैसे अपराध अछम्य हो।

बद्दुआओं की झड़ी भी लगती, पल पल कोसे जाते प्रेमी,
पा न सकें जीवन में कुछ तो दोषी भी ठहराये जाते प्रेमी।

प्रेमी भी इंसां हैं कौन इन्हें ये बतलाये,
जरूरत इन्हें भी पड़ती, कोई दुआएं इन्हें भी दे जाये।

न कोई अपना होता इनका,
न पराया, न ही मित्र,सगा ।
हर मोड़ पर ये रहें अकेले,
पीछे न इनके कोई खड़ा।

अपने ही बन जाते शत्रु ,प्रेम उन्हें इनका ज़रा न भाता।
ये थे ही गलत,ये हैं ही गलत,सबको बतलाया भी जाता,

मित्रों की भी बात...