...

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इश्क है तो डर कैसा??
लफ्जों से बयां करने जाऊं,
तो लब्ज़ कम पड़ गए।
आंखों से बयां करने जाऊं,
तो आंखें भी शर्मा गए।
शब्दों से बयान करने जाऊं,
तो शब्द ही पन्नों से खो गए।
पर पता नहीं कैसे मेरी एक मुस्कान से तुम मेरे प्यार को समझ गये।।
अजीब है पर है यही सच,
एक मुस्कान भी दो दिलों को कर देता है जोड़।

इश्क है तो डर कैसा?
जल्द इज़हार कर दो तो प्यार कैसा?
खुशबू धीमे-धीमे आए तो,
दिल तक पहुंच जाती है।
और अगर प्यार भी धीरे-धीरे हो,
तो मुकम्मल होने में डर कैसा??
© shree