...

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तन्हाई
ये शहर कैसा है हर इन्सान तन्हा दिखाई दे
बस सिर्फ जिस्म है हर इन्सान जिन्दा दिखाई दे

हर यहाँ दिल जलता है, हर जिक्र की आवाज सुनी है
आसपास धुआँ नजर आए , न शोला अब दिखाई दे

इतना दिन धूंधला , हर चेहरा फिर अजनबी है
हर किताबमें दिलकाही हर पन्ना कोरा दिखाई दे

ये कहाँ पहुँची नये अन्दाज लेके जिन्दगी मेरी
जख्म मेरा इस सलीक़ेसे जला हुआ दिखाई दे

कोईभी शख्स यहाँ भी परखनेसे भी परखता नहीं
ये किसी भी आइनमें यूँ अजब बैठा दिखाई दे



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