...

10 views

हृदय के द्वार
छोड़ अपना आंगन
जो उनके द्वारे जाऊंगी
जिम्मेदारियों का ये रिश्ता
जाने कैसे निभाऊंगी
बाबा के लाड में पली
भाई बहनों के संसार में पली
आखिर नई दुनियां कैसे बसाऊंगी
छूट जाएगा पल भर में
सब अपनो का दामन
जब घर आएंगे मन भावन
कहती है सब सखियां
की अब बदल जाऊंगी
जा कर मन भावन संग
उनको कहां याद कर पाऊंगी
दिल की ये उलझन
आखिर कैसे सुलझाऊंगी
भेद मन के अब किसको बतलाऊंगी
इसी कशमकश में
दिन और रात गुजरते हैं
सवालों के परिंदे
मन के बगीचे में कुछ यूं विचरते हैं
जवाबों की तलाश है
मन में बस इतनी आस है
खुले हो घर के दरवाजों संग
हृदय के द्वार भी
ना छूटे कोई इस पार
ना रूठे कोई उस पार ही।
अंजली