संतूर मम्मी भवः
जब से यह संसार बना, यह प्रकृति बनी.. इस प्रकृति को माँ कहा गया। इस नामकरण से यह पता चला है कि माँ शब्द में कितनी गहराई.. कितनी विशालता..है और यह शब्द न जाने कितने अर्थ समेटे हुए है।अब बात करते हैं..माँ की। युगों- युगों से चला आ रहा है कि जब-जब स्त्री ने माँ का अवतार लिया,वह न केवल उस संतान के लिए..अपितु समूचे समाज के लिए प्रेरणादायी रही। उसने अपने आप को ऐसे साँचे में ढाल लिया जहाँ वह सारे-रिश्ते मान-मर्यादा को निभाने में खुद को लगभग भूल बैठी।यहाँ तक कि हमारे समाज में उसको दिए जाने वाले आशीर्वाद में भी वह और रिश्तों से जानी गई। लेकिन अब वक्त करवट ले रहा है।अब न केवल समाज के प्रति.. न केवल संतान के...