...

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जितना कुछ पाया है
जितना कुछ पाया है उनसे
उतना उन्हे ना लौटा पाऊंगी
अपना जीवन दे कर भी मैं
उनका ऋण ना चुका पाऊंगी

अपने मौन में
अपनी हर पीड़ा छुपा लेते हैं
और मेरी उदासियो में अपना
कांधा वो मुझे सौपते हैं

मैं अपनी पीड़ा अपनी व्यथा भूल जाती हूं
जब वो हल्के से मुस्कुराकर
मुझे गले से लगा लेते हैं



© अपेक्षा