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इत्र की रूहानी खाशियत
ऐ इत्र, तू हवा में घुल कर एक ऐसी खुशबू अता कर दे।
जिसकी महक, फिजा में अलग सी रूहानी सुकुन पैदा कर दे ।।

न कभी गुरुर हो खुशियों से, और न तो कभी ग़म सताए ।
ठंड़क हो दिल में ऐसी जो जुबान पे खुदा का जिक्र कराए।

इबादतों में अपने, खुदा के अजमतों व रहमतों का बस हमसे याद करवाये ।
हर हालतों में, फैज बरकरार रहे उसका हमपे, ऐसे दुआएं भी मंगवायें ।।

करम का हो हमपे ऐसा साया जिससे हमको कभी न शैतान भटका पाए ।
और न तो कभी... ईरादे जायज को अपने, मुख़ालिफ साजिश भी रुका पाए ।।

अपने बुजुर्गाने दीन की राह पे हमसे हमेशा ज़िंदगी कटवाएं ।
सुन्नत-ए-रसूल की चाह पे ज्यादातर हमसे अमाल भी करवाए ।।

गर कोई बेबसी हो तो, हाथ फैलाकर सिर्फ वो आलेम-उल-ग़ैब को सुनवाएं ।
उसके अलावा कभी और किसीका कोई खौफ मन में बिल्कुल न आए ।।

ऐ इत्र, तू हवा में घुल कर एक ऐसी खुशबू अता कर दे।
जिसकी महक, फिजा में अलग सी रूहानी सुकुन पैदा कर दे ।।

© सराफ़त द उम्मीदभरे क़लाम

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