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मजबूरी ।
अपनों से लूटा औरों पे क्या विश्वास करेगा,
छिन चुका हाथ का पाने की क्या आश करेगा,
झोंके से भी डरता है चोट खाया तूफान से।
•जाने क्या-क्या करवा दे मजबूरी इंसान से।
हौसला कम नहीं था गिर के खड़े होने का,
मगर उसने फर्ज नहीं निभाया बड़े होने का,
मेरा दोस्त है, कहता था जिसे मैं बड़े शान से।
•जाने क्या-क्या करवा दे मजबूरी इंसान से।
इश्क ने जाने कितनों को बर्बाद कर रखा है,
मैं भी उनका एक-एक सितम याद रखा है,
खरीद लता भरोसा मिलता अगर दुकान से।
•जाने क्या-क्या करवा दे मजबूरी इंसान से।
•जाने क्या-क्या करवा दे मजबूरी इंसान से।
© Dharminder Dhiman
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