चाँद की शरगोशियाँ
चाँद की शरगोशियाँ न जाने होले से क्या कह गई ,
चलने लगी थी घर को में ,
बस शब भर वहीं ठहर गई जो देखा नूर चाँद का नज़र फिर वहींअटक गई...
चलने लगी थी घर को में ,
बस शब भर वहीं ठहर गई जो देखा नूर चाँद का नज़र फिर वहींअटक गई...