परिवार
एक पुराना बडगद था धूप में सनी जिसकी हर डाली थी
जिसकी छाव बड़ी निराली थी
सींचा हमे था एक माली ने
वो माली भी महान था
पैरो में पड़े थे छाले जिनके
फिर भी चेहरे पर मुस्कान था
कहने को चार डाल थे जिनके
चारो के अलग विचार थे
कोई शांत था नदियों की तरह
कोई खुद में लिए तूफान था
कोई कह जाता था हर बात
कोई रातों सा गुमनाम था
कोई चुप था मूरत की तरह
किसी में शेर का दहाड़ था
सबकी...