परिवार
एक पुराना बडगद था धूप में सनी जिसकी हर डाली थी
जिसकी छाव बड़ी निराली थी
सींचा हमे था एक माली ने
वो माली भी महान था
पैरो में पड़े थे छाले जिनके
फिर भी चेहरे पर मुस्कान था
कहने को चार डाल थे जिनके
चारो के अलग विचार थे
कोई शांत था नदियों की तरह
कोई खुद में लिए तूफान था
कोई कह जाता था हर बात
कोई रातों सा गुमनाम था
कोई चुप था मूरत की तरह
किसी में शेर का दहाड़ था
सबकी कथा निराली थी
कोई खेला जड़ से तो
किसी ने पतझड़ ही ठानी थी
वक्त बिता टूटे डाली, वो माली भी अब बूढ़ा था
बूढ़ा माली क्यू लगता बोझ ,जिसने ताउम्र बोझ उठाया था
बिन माली के उजड़ा बाग ,हर आता जाता आंख दिखाएगा
मेरा उसका,उसका मेरा के लड़ाई में कोई और ही लाभ उठाएगा
तनिक ठहर के सोच ले डाली लेकर क्या तू जाएगा
माली के बिना क्या तेरी कोई अस्तित्व रह जाएगा
मां के कोख से आया था तू फिर मिट्टी में मिल जाएगा
राह कठिन है मंजिल दूर ,छल कपट तृष्णा का बोझ.. कैसे तू उठाएगा
मुट्ठी में बंद है तागत तेरी, मुठ्ठी खोल उड़ जाएगा
मौका है तू सोच ले राही
फिर बाद में पछताएगा
© pawan Kumar prabhakar07A