मेरे एहसास
तपती हुई,
दोपहरी में
शीतल सी बयार हो तुम
हर तपिश भूल जाती हूं; मैं
वैसी कोई राहत हो तुम
मूंद लेती हूं
जब पलकों को अपनी
बहुत नजदीक आ जाते हो तुम
चाहे दूरियां जितनी भी हो,
हर_पल मुझे करीब
महसूस होते हो तुम......
© अपेक्षा
दोपहरी में
शीतल सी बयार हो तुम
हर तपिश भूल जाती हूं; मैं
वैसी कोई राहत हो तुम
मूंद लेती हूं
जब पलकों को अपनी
बहुत नजदीक आ जाते हो तुम
चाहे दूरियां जितनी भी हो,
हर_पल मुझे करीब
महसूस होते हो तुम......
© अपेक्षा
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