...

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सत्य की मौत
तुम्हारा क्षत विक्षत लहूलुहान
शव देखकर
सोचा मैं भी बोलूं
कुछ तुम्हारे लिए
और कुछ उस सत्य के लिए
जो रोज दुबक कर बैठ जाता है
कहीं कितने पन्नों में
कितनी आवाज़ों में

तुम्हे नहीं जानती थी मैं
कल रात सुना
बड़ा नाम नहीं था न तुम्हारा
आज बड़ा हो गया
आज तुम ही तुम हो
आज तुम्हारा कद बड़ा हो गया
आज देखा तुमको
बोलते हुए
कुछ ज्यादा बोलते थे
तुम उनके लिए
जिनके अधिकारों के लिए
लड़ते थे तुम
अपनी बेबाक आवाज से

आज...