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गाँती
गाँती

"राम जी राम जी घाम करऽ
सुगवा सलाम करऽ
तहरी बलकवा के जड़वत बा
लकड़ी फूंक-फूंक तापता"
अपने घर के "छोटे सरकार" के इस "गाँती" मे बंधे रूप को देखा तो लोक जीवन की ये बाल कविता सहसा मन में उभर आई.. मानो ये अबतक इसी प्रतीक्षा में हो..इन पंक्तियो को किसने कब और कहां रचा ?

कुछ ज्ञात नही..पर बाल मनुहार की ये मृदुल महागाथा बहुत से कण्ठो से फूटी होगी, न जाने कितने ही कोमल अधरों ने अपने बचपन में इसे...