...

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नायिका
मन के उजालों से
कभी अधरो के प्याले से
अमृत छलकाती है
ये कैसी नायिका हैं
विरह के गीत गाती है
वियोग चुनना भी
लगें सौभाग्य उसे
ऐसी विकटता
समझ कहा आती है
मन्द मन्द कविता
मुस्कुराती है
आंख भर आती है
नयना प्रीत की बाती
ज्योत जलाती है
फिर भावना क्यों
क्षीण हो जाती है
मौन हो जाती है कविता
और नायिका नजर
नहीं आती है....

©®- पंकज कोहली






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