...

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जमाना
जमाने भर का गम लिए घूम रहा हु
नींदों की थैलियां लिए घूम रहा हु
फुरसते बहुत है मेरे पास
रातों मैं अक्सर अपने दर्दो को संजोए रहा हु

पूछा किसी ने हाथ पकड़ के मेरा
मैं रास्तों मैं भी सरेआम रो रहा हु
किसी का कंधा न मिला हौसला अफजाई मैं
मां और बाप को मन ही मन टटोल रहा हु

थक के बैठ गया मैं रातों मैं किनारे छत के
सुबह बेरंग होते देख रहा हु
रोका चांद को की होगा घुफ्तगु रात भर
पर चांद को किसी और को होता देख रहा हु

© rsoy