मेरी दुआ , मेरी मन्नत हो
एक अर्से से अर्ज़ी दे रखी है की तुम मेरे हक में आ जाते
खता तुम्हारी , अदालतें तुम्हारी तब फ़ैसला मेरे हक में कैसे आ जाते।
कातिल ये निगाहे उसकी , मेरे दिल में खंजर जैसी लगती है
और वो बेखबर पूछते है अब ठीक हो या किसी हकीम की जरूरत लगती है।
मुझे अपनी बाहों का सहारा दे दो , अगर हो सके तो उनमें मुझे पनाह दे दो
बहुत अकेले रहे इस इस दुनिया में ,...
खता तुम्हारी , अदालतें तुम्हारी तब फ़ैसला मेरे हक में कैसे आ जाते।
कातिल ये निगाहे उसकी , मेरे दिल में खंजर जैसी लगती है
और वो बेखबर पूछते है अब ठीक हो या किसी हकीम की जरूरत लगती है।
मुझे अपनी बाहों का सहारा दे दो , अगर हो सके तो उनमें मुझे पनाह दे दो
बहुत अकेले रहे इस इस दुनिया में ,...