...

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अश'आर
कब्ज़ा कर बैठे है वो मेरे दिल पर
और कोई! अब ये सोचना भी हराम है

उस ज़ालिम में बुत देख लिया है मैंने
रहाई को हासिल कर लिया है अब मैंने
रहाई - मुक्ति

न जाने आज चाँद क्यूँ न निकला
लगता है मेरा यार मुझसे ख़फा है

भूलकर भी भूल से अब याख़ुदा नही कहता
उसकी गद्दी पर मेरा यार जो काबिज़ है

कभी करती है मदहोश कभी लगती है पाक़
उसकी हर अदा मुझे कर देती है खाक़

अमावस की रातें बढ़ने वाली है अब
मेरा यार जो मुझसे जुदा हो रहा

न जाने क्यूँ ये सूरज डूबता है हर रोज़
वक़्ते-विसाले-यार मुझसे छीनता हर रोज़

चाँद की चाँदनी ये फ़ीकी पड़ रही है
मेरा यार जो मुझसे निहां हो रहा है
निहां होना - छुपना

मेरी हर तमन्ना व़ ज़ालिम मुकम्मल करता है
यूँ ही नहीं मैंने उसे बुत बनाया है

दिन-ब-दिन नूर बड़ रहा...