* चेहरे का नूर *
रात के धनेरे में छुपे छुपे चहरे का नूर हैं,
उस पार के क़दम कभी राहों में चूर हैं।
मन के खलिस जागी आंखों में सन्नाटे हैं,
रौंद रहे रौशनी बंजर जहां आब-ए-नूर हैं।
न दाग़ कहीं न आग कहीं बाग़ के गुल हैं,
सहर के बहाव शाम के छाँव कहीं के हूर हैं।
चेहरा-नूमा के ख़बर में तमाम शहर चहलकदमी हैं,
जहाँ हल्की वहाँ दहकी पूरे...
उस पार के क़दम कभी राहों में चूर हैं।
मन के खलिस जागी आंखों में सन्नाटे हैं,
रौंद रहे रौशनी बंजर जहां आब-ए-नूर हैं।
न दाग़ कहीं न आग कहीं बाग़ के गुल हैं,
सहर के बहाव शाम के छाँव कहीं के हूर हैं।
चेहरा-नूमा के ख़बर में तमाम शहर चहलकदमी हैं,
जहाँ हल्की वहाँ दहकी पूरे...