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ख्वाहिश
तू किसी दरगाह का मन्नत सा लगा ,
टूटे तारों से मांगी ख्वाहिश सा लगा,
देखूं टकटकी सा तुझे,
जैसे चांद देखूं मैं आसमा में...
खुलती तू किसी पकंज सा
मैं भंवरा सा इंतजार में तेरा ,
ओस से लोगों के बीच
पंकज सा साफ दिल तेरा,
खुशबू में घुलते इत्र सी लगती तु
ये मेहरम सा दिल भटकता है,
चाहे न चाहे ये मन मेरा ,
लेकिन सिर्फ तुझमें ही बटकता है...
© anonymous writer
टूटे तारों से मांगी ख्वाहिश सा लगा,
देखूं टकटकी सा तुझे,
जैसे चांद देखूं मैं आसमा में...
खुलती तू किसी पकंज सा
मैं भंवरा सा इंतजार में तेरा ,
ओस से लोगों के बीच
पंकज सा साफ दिल तेरा,
खुशबू में घुलते इत्र सी लगती तु
ये मेहरम सा दिल भटकता है,
चाहे न चाहे ये मन मेरा ,
लेकिन सिर्फ तुझमें ही बटकता है...
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