...

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ख्वाहिशें
चांद को दागदार कहने वाले भी
हर रोज चांद की ख्वाहिश करते है
डूब जाएगा एक दिन अंधेरे में सब कुछ
ये जानकर भी चांदनी से प्यार करते हैं
ये इंसा है क्या बस ख्वाहिशों का मारा है
जमी पर रह कर भी सितारों की बात करते हैं
बेशुमार कांटे चुनने पड़ते हैं, राहों में फूल बिछाने को
और लोग पांव के लहू को बनावटी रंगत समझते हैं
जख्म हमारा दिखता नहीं जमाने को
लोग मरहम को भी नमक सा रखते हैं
भूलकर जमाने के हर तंज, हर फिकरों को
लहरों पर भी हम रेत का घर बनाने का दम रखते हैं.


✍️✍️✍️✍️© Ranjana Shrivastava
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© Ranjana Shrivastava