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फिर से..
आजकल खुद से ज्यादा बतियाने लगा हूं,
शायद फिर से तुझे चाहने लगा हूं
जागते हुए सपना देखने लगा हूं,
शायद तुझमें मेरा अपना देखने लगा हूं
फिर समझाता हूं खुद को,
क्यों उसी पुरानी राह पर चलने लगा हूं
दिल पर मेरी पकड़ कम होने लगी,
मैं उसी खंडहर की तरफ लौटने लगा हूं
तुम खुश हो हमसफर के साथ,
मैं फिर से अपने आप को कोसने लगा हूं,
जरा भी नहीं खयाल अपना,
आजकल तुम्हें ज्यादा सोचने लगा हूं
तुम ना आओगी कभी,
फिर से दिल को समझाने लगा हूं...
© Naren07
शायद फिर से तुझे चाहने लगा हूं
जागते हुए सपना देखने लगा हूं,
शायद तुझमें मेरा अपना देखने लगा हूं
फिर समझाता हूं खुद को,
क्यों उसी पुरानी राह पर चलने लगा हूं
दिल पर मेरी पकड़ कम होने लगी,
मैं उसी खंडहर की तरफ लौटने लगा हूं
तुम खुश हो हमसफर के साथ,
मैं फिर से अपने आप को कोसने लगा हूं,
जरा भी नहीं खयाल अपना,
आजकल तुम्हें ज्यादा सोचने लगा हूं
तुम ना आओगी कभी,
फिर से दिल को समझाने लगा हूं...
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