...

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तेरे ख़त
इंतज़ार के वो लम्हे बेमानी से लगते है
जब तेरा ख़त आता है
ख़ुश्बू एहसास जज़्बात प्रेम से
लबालब भरा हुआ वो पहले अक्षर से
वो अक्षर से आख़री पूर्ण विराम तक का
तेरे होने के हर एहसास को जगा जाता है
जब भी तेरा ख़त आता है
गिले शिकवे वो मान मनुहार पल में
उड़नछू हो जाता जब अक्षर बा अक्षर पढ़ता हूँ
तेरे हाथों की मेहँदी की ख़ुशबू से
आज भी महकती है मेरे दराज़
जहाँ रखता हूँ तेरे वो ख़त
© 𝕤𝕙𝕒𝕤𝕙𝕨𝕒𝕥 𝔻𝕨𝕚𝕧𝕖𝕕𝕚