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आओ किसी के मुस्कुराने की वज़ह बन जाएँ
आओ किसी के मुस्कुराने की वज़ह बन जाएँ,
आओ किसी के गुनगुनाने की वज़ह बन जाएँ।।
कहीं ग़रिब-ख़ाने उजड़ न जाए भुखमरी में,
किसी के दो वक़्त खाने की वज़ह बन जाएँ।।
अँधियारे हैं चौबारे, जहाँ ज़िन्दगी बेनाम सी,
कोई चराग़ ही जगमगाने की वज़ह बन जाएँ।।
उसका भी हक़ है, काग़ज़ क़लम हो हाथ में,
किसी के सपने सजाने की वज़ह बन जाएँ।।
अच्छे नहीं लगते बच्चे सड़कों पर माँगते हुए,
चलों उनके हाथ न फैलाने की वज़ह बन जाएँ।।
© भरत 'राज़'
#writco #writcopoem
#zindagi #वज़ह
#अधूरा_इंसान #bharat_rawalwas
आओ किसी के गुनगुनाने की वज़ह बन जाएँ।।
कहीं ग़रिब-ख़ाने उजड़ न जाए भुखमरी में,
किसी के दो वक़्त खाने की वज़ह बन जाएँ।।
अँधियारे हैं चौबारे, जहाँ ज़िन्दगी बेनाम सी,
कोई चराग़ ही जगमगाने की वज़ह बन जाएँ।।
उसका भी हक़ है, काग़ज़ क़लम हो हाथ में,
किसी के सपने सजाने की वज़ह बन जाएँ।।
अच्छे नहीं लगते बच्चे सड़कों पर माँगते हुए,
चलों उनके हाथ न फैलाने की वज़ह बन जाएँ।।
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