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ओ! इसरो
ओ! इसरो, तुम्हारे संघर्ष तुम्हारी जीत को सलाम है
चांद तो बस शुरुआत है, ब्रह्माण्ड तक का मुकाम है
बैलगाड़ी के पहियों से, पटरियों तक का ये सफ़र
विदेशियों की उपेक्षाओं से, अपेक्षाओं की ये डगर
कितनी ही चुनौतियां, असफलताएं आईं हों मगर
जीत की प्रतिभा तनिक भी, डगमगाई ना मगर
बस देश के सम्मान हित, इसरो के गौरव मान हित
पीछे कभी मुड़कर जरा, देखा न राहों में ठहर
कहते थे जो कुछ लोग हमको, भूखे नंगे भेष वाले
आज ताली बजा रहे हैं, उनके अपने देश वाले
शौर्य की कहानियों की, हिन्द के जुबानियों की
तू बनेगा सिर मुकुट, इस देश के बलिदानियों की
हर सफ़लता आने वाली, विश्व भर में छाने वाली
देश की उड़ान अब तो, और आगे जाने वाली
है तमाचा उनके मुंह पर, जो एलीट बन रहे थे
देश के बारे में मेरे, हीन बातें कह रहे थे
उनसे कह दो ठहर कर अब, वीर्य देखें सूर्य का
आने वाले वक्त में, छाए विभा के तूर्य का
प्रतीक्षा के परिणाम का, वैज्ञानिकों के काम का
है चमकता चांद पे जो, इसरो के उस नाम का
हौसले का, धैर्य का, कुछ कर दिखाने का जुनून
ये सवेरा है नया, इस नए हिंदुस्तान का...
© Er. Shiv Prakash Tiwari