ना-उम्मीद
अब कोई उम्मीद नहीं आने की
हम सब फिर भी रस्ता तकते हैं
कर ली हैं माँ ने आँखें पत्थर
पापा हर पल रोते सिसकते हैं
अब सूरज निकलता नहीं छत पे
बस ग़म के बादल काले-काले हैं
उदासी बैठी रहती है दहलीज़ पे
घर में हर तरफ़...
हम सब फिर भी रस्ता तकते हैं
कर ली हैं माँ ने आँखें पत्थर
पापा हर पल रोते सिसकते हैं
अब सूरज निकलता नहीं छत पे
बस ग़म के बादल काले-काले हैं
उदासी बैठी रहती है दहलीज़ पे
घर में हर तरफ़...