...

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ना-उम्मीद
अब कोई उम्मीद नहीं आने की
हम सब फिर भी‌ रस्ता तकते हैं

कर ली हैं माँ ने आँखें पत्थर
पापा हर‌ पल रोते सिसकते हैं

अब सूरज निकलता नहीं छत पे
बस ग़म के बादल काले-काले हैं

उदासी बैठी रहती है दहलीज़ पे
घर में हर‌ तरफ़ सन्नाटे पसरे हैं

तुम्हारे बग़ैर कुछ नहीं है भाई
हम पर सौ-सौ अज़ाब उतरे हैं

हम सब जी रहे हैं मर-मर कर
ये दर-ओ-दीवार तेरे वास्ते रोते हैं

इस तरह गए तुम कुछ कहा भी नहीं
इस‌ बात‌ पर हर रोज़ हाथ मलते हैं

दिल का टुकड़ा दिल से जुदा हो तो
हम कैसे बिन धड़कनों के सकते हैं

कोई ग़म के मारों से पूछ कर बताओ
कितनी सदियों में ये घाव भरा करते हैं