दूर हूं!
जिसके इंतज़ार में रहा करती थी,
उसके साए से दूर हूं!
जिसकी तमन्ना दिल को थी,
उसकी तलब से दूर हूं!
ख्वाहिश थी ताउम्र साथ निभाने की,
उसकी हर एक ख्वाहिश से दूर हूं!
बेपनाह चाहती थी,
जान मैं उसपे अपना वारती थी,
हर हाल में उसके साथ मैं रहना चाहती थी,
उसी से दूर हूं!
जाने मैं कितना मजबूर हूं?
कभी जो उसपे सवाल उठता,
मैं बेढंग जवाब बनती।
आंच उसपे कभी न आए,
खुदा से यही अरदास अपने दुआ में करती थी।
एक सोमवार का व्रत नहीं,मैं हर एक व्रत सुहागनों वाली उसके लम्बी व खुशहाल जीवन की कामना के लिए करती थी।
उसी से दूर हूं!
जाने मैं कितना...
उसके साए से दूर हूं!
जिसकी तमन्ना दिल को थी,
उसकी तलब से दूर हूं!
ख्वाहिश थी ताउम्र साथ निभाने की,
उसकी हर एक ख्वाहिश से दूर हूं!
बेपनाह चाहती थी,
जान मैं उसपे अपना वारती थी,
हर हाल में उसके साथ मैं रहना चाहती थी,
उसी से दूर हूं!
जाने मैं कितना मजबूर हूं?
कभी जो उसपे सवाल उठता,
मैं बेढंग जवाब बनती।
आंच उसपे कभी न आए,
खुदा से यही अरदास अपने दुआ में करती थी।
एक सोमवार का व्रत नहीं,मैं हर एक व्रत सुहागनों वाली उसके लम्बी व खुशहाल जीवन की कामना के लिए करती थी।
उसी से दूर हूं!
जाने मैं कितना...