...

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दूर हूं!
जिसके इंतज़ार में रहा करती थी,
उसके साए से दूर हूं!
जिसकी तमन्ना दिल को थी,
उसकी तलब से दूर हूं!
ख्वाहिश थी ताउम्र साथ निभाने की,
उसकी हर एक ख्वाहिश से दूर हूं!
बेपनाह चाहती थी,
जान मैं उसपे अपना वारती थी,
हर हाल में उसके साथ मैं रहना चाहती थी,
उसी से दूर हूं!
जाने मैं कितना मजबूर हूं?

कभी जो उसपे सवाल उठता,
मैं बेढंग जवाब बनती।
आंच उसपे कभी न आए,
खुदा से यही अरदास अपने दुआ में करती थी।
एक सोमवार का व्रत नहीं,मैं हर एक व्रत सुहागनों वाली उसके लम्बी व खुशहाल जीवन की कामना के लिए करती थी।
उसी से दूर हूं!
जाने मैं कितना मजबूर हूं?

मैं उसके नाम से ख़ुद में हसती,रोती व मुस्कुराती थी।
वो कहे तो मेरी नामंजूरी की भी हमेशा हामी थी।
मुझमें मैं नहीं, उसके इश्क का डेरा था।
उसका ही घर मुझमें बना था।
मेरे रग रग में उसका ही नशा चढ़ा था।
मुझसे ज्यादा वो मुझमें बसता था।
उसी से दूर हूं!
जाने मैं कितना मजबूर हूं?

मैं उसे जाना और वो जान मुझको कहता था।
मैं तो उसको रब मानती थी।
वो जाने क्यों मुझको गिरा हुआ समझ बैठा?
होके हालातों से वाकिफ सब,
अपना बना मुझको फिर वो इतना मजबूर कर गया,
मुझको होना उससे दूर पड़ा।
जानें वो कितना मुश्किल पल रहा?

एक अरसा हुआ उससे बिछड़े,
फिर भी वही दिल में है।
मन चाहता उसका दीदार करना,
गले लगा उससे प्यार करना।
लेकिन हक़ीक़त अब कुछ और है,
वो तो मेरा प्यार है मगर मैं उसकी एक गलती,
भूल हूं! जिसके निशान वो चाहता है मिटाना।
शायद इसलिए, जिसे चाहा रब से भी ज्यादा
उसी से दूर हूं!




© The Unique Girl✨❤️