...

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इसानी महफ़िल
जमीन बंजर थी, घटा खूब बरसी
लेकिन
पथरो में दरारे और मिट्टी सूखी पड़ गई
दुनिया की कहानियां, पैसा, मका सबपे
लाल मध्यम सूरज और चांद की मेहपहिल भारी पड़ गई।

ये कैसी तुम्हारी दुनिया है, सच पे बिगड़ जाती है,
पेड़ों ओर जानवरो के हक पे क्यों? पिछड़ जाती है
जमीं का सब कुछ लूट लिया
सुना है! यारों लूटने वालों की वाकलते महफ़िल में सज़ा- ए- मौत की कलम तक लूट ली जाती है।
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