...

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ये क्या हुआ?
आज सूरज भी निस्तेज
शाखाएं एकदम शांत
कहीं कोई हलचल नहीं
दुःख में गमगीन
पेड़ों की कतारें
मौन धारण किए खड़ी है
कहीं पक्षियों की चहक नहीं
न भंवरों का गुंजार
सड़क जैसे पश्चाताप करती हुई
खुद को ही दोषी मान रही हो
खेतों में कोई रौनक नहीं
धुंआ उठ रहा है कहीं से
शायद किसी की आत्मा दहक रही है
किसी मां की आंखों की रोशनी चली गई है
किसी पिता का सहारा बिछुड़ गया है
चिराग बुझ गया है
पर खेद है बिना हवा के झोंके से ही
अभी और जलता चिराग
शायद किसी ने फूंक मारकर बुझा दिया है
प्रकृति की ये कैसी शांति
जी चाहता था तोड़ दूं
जोरदार चीख के साथ
मैं एक बार रो दूं