मैं जख्मों को टटोल लेती हूं...
मैं जख्मों को अपने टटोल लेती हूं
नमक डालकर गिले शिकवों की परतें जोड़ लेती हूं
ख्वाहिश नहीं अब मेरी
किसी का अजीज़ हो जाने की
मैं उम्मीदों का मयखाना
नुक्कड़ के अहाते पर छोड़ देती हूं
कोई वाजिब लफ्ज़ अब मिलता नहीं
बयां करने को...
नमक डालकर गिले शिकवों की परतें जोड़ लेती हूं
ख्वाहिश नहीं अब मेरी
किसी का अजीज़ हो जाने की
मैं उम्मीदों का मयखाना
नुक्कड़ के अहाते पर छोड़ देती हूं
कोई वाजिब लफ्ज़ अब मिलता नहीं
बयां करने को...