...

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~ वास्तविकता की दासता ~

हमनें नन्हे- नन्हे कदमों को पिता के भारकारी चप्पलों से नापते हुए देखा है,
हमनें हर नन्ही माटी को चट्टानों से टकराने का हौसला पिरोते हुए देखा है,
सूरज की किरणें फैलाती है उजाला करती है सवेरा दिन में,
हमनें हर मध्य रात्रि को चंद्रमा की किरणों से उज्जवलित होते हुए देखा है।

क्या बोलें नन्ही चिड़ियां,चुप बैठी है अपने नगर में,
हमनें हर चहचहाती पक्षी को दिल में दर्द समाए, ख़ामोशी चेहरे पर...