...

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पैमाने में ....
शोहरत भी था, मकसद भी था
सोंचा जी लूंगा अब इस जमाने में ।
कहाँ इल्म था मुझे
जमाने की साजि़श का ।

बढा़या इक कदम जब
जमाने में ....
कुछ भी ना रहा मेरे पास
जो था वो भी चला गया ,

गया था जो एक बार मैखाने में
डूबने मैं, छलकते पैमाने में ....

© ya waris