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ठहराव की चाहत
इन दौड़ते लम्हों को कोई लग़ाम लगा दे ।
सुकून की टपरी किसी शाम लगा दे ॥
थक सा गया हूँ सबके काम करते करते
अब तो निकक्कमो में मेरा भी नाम लगा दे ।
माना ज़िम्मेदारियाँ हैं ज़िंदगी में बड़ी बड़ी
चुनोतियाँ है सामने विशाल पर्वत सी खड़ी॥
अरे ज़िंदगी होती है बहुत छोटी मेरे यारों
मुझे इसे घुट घुट के जीने की बिलकुल नहीं पड़ी ॥
सुकून की टपरी किसी शाम लगा दे ॥
थक सा गया हूँ सबके काम करते करते
अब तो निकक्कमो में मेरा भी नाम लगा दे ।
माना ज़िम्मेदारियाँ हैं ज़िंदगी में बड़ी बड़ी
चुनोतियाँ है सामने विशाल पर्वत सी खड़ी॥
अरे ज़िंदगी होती है बहुत छोटी मेरे यारों
मुझे इसे घुट घुट के जीने की बिलकुल नहीं पड़ी ॥
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